पाठ्यक्रम - उद्देश्य एवं संभावित निष्कर्ष
हिंदी मात्र एक भाषा नहीं, हिंदुस्तान में रहने वाले हर हिंदुस्तानी की अपनी गौरवमयी ‘पहचान’ है। ‘हिंदी’ सचमुच किसी जाती, समुदाय या प्रांत विशेष की अपनी अकेली, अलग पहचान या भाषा नहीं है। ये तो सदियों - शताब्दियों के भारतीय इतिहास, संस्कार, रीती - रिवाजों और परम्पराओं को अपने दामन में संजोए, निरंतर हर दूसरी सभ्यताऔर संस्कृति को सम्मान सहित आश्रय प्रदान करती, अपना अनुपम, अपूर्व अस्तित्व बनाए रख, सतत प्रवाहित हो रही उर्ध्वमुखी सभ्यता - संस्कृति की सनातन - पुरातन प्राचीन धारा है। इसके अजस्र - अविरल प्रवाह को अनेकों प्रयासों के उपरांत भी कोई कभी रोका न सका। हिंदी की सबसे बड़ी ताकत - सबका होकर उन्हें अपना बना सकने की उसकी अपनी क्षमता रही है और आगे भी रहेगी ; इसलिए इसमें हमें हमेशा एक नयापन देखने को मिलता है जो हमें इसे अपनाने - अपना बनाने के लिए आमंत्रित - आकर्षित करता है। अत: और भी आवश्यक हो जाता है कि हम हर उस नवागंतुक जो हिंदी को अपनाने - अपना बनाने की इच्छा ले सामने आता है, के लिए हिंदी का उसके स्वभावानुरूप सहज, सरल एवं स्वीकारणीय स्वरूप सामने रखें। इसी सिद्धांत पर हमारे विश्वविद्यालय का हिंदी द्वितीय भाषा पाठ्यक्रम संजोया - संवारा गया है :
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हिंदी का प्राचीनतम रूप गद्यात्मक नहीं पद्यात्मक रहा है। लेकिन फिर आधुनिक हिंदी भाषा 'जनक' भारतेन्दु आदि ने इस सत्य को पहचाना कि देश का विकास तभी संभव और सफल हो सकेगा जब उसकी दशा और दिशा से आम जन भी परिचित हो सकेगा। इसलिए पद्य से पहले गद्य की आवश्यकता को पहचाना और प्राथमिकता दी गई है। महल को मजबूती देने में स्तंभ और धारिकाओं का जो स्थान होता है, वही भाषा में व्याकरण का होता है। इसलिए जहाँ एक ओर जीवन मूल्यों को जानने - समझने और अपनाने हेतु प्रेरणाप्रद छोटी शिक्षाप्रद 'कहानियों' एवं 'एकांकियों ' की सहायता ली गई है , वहीं इन्हें सीमित समय में, सही अर्थ में समझ सकने में सहायतार्थ बचपन से ही सिखलाए जाने वाले व्याकरणिक स्वरूप में से केवल उसी और उतने को ही शामिल किया गया है जिसे लेकर इस स्तर के विद्यार्थी प्राय: त्रुटियाँ करते हैं ताकि सही तरीके से हिंदी समझने, बोलने और लिखने में उन्हें मदद मिल सके। लेकिन ये सारे प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं अगर सही सुनने , बोलने , लिखने और पढ़ने की आदत शुरू से ही न विकसित की जाए इसीलिए "सही सुनो,सही बोलो, सही लिखो और सही पढ़ो" पर बल दिया गया है।
इस तरह से प्रथम सत्र के अंत तक विद्यार्थी सही तरीके से हिंदी समझने, बोलने और लिखने की कला से परिचित हो सकेगा।